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अय्यप्प स्तोत्रम् अरुणोदयसंकाशं नीलकुंडलधारणम् । चापबाणं वामहस्ते रौप्यवीत्रं च दक्षिणे । [चिन्मुद्रां दक्षिणकरे] व्याघ्रारूढं रक्तनेत्रं स्वर्णमालाविभूषणम् । किंकिण्योड्यान भूतेशं पूर्णचंद्रनिभाननम् । भूतभेतालसंसेव्यं कांचनाद्रिनिवासितम् । इति श्री अय्यप्प स्तोत्रम् । |