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श्री षिरिडी सायि चलीसा

शिरिडीवासा सायिप्रभो जगतिकि मूलं नीवे प्रभो
दत्त दिगंबर अवतारं नीलो सृष्टि व्यवहारम् ॥

त्रिमूर्तिरूपा ओ सायी करुणिंचि कापाडोयि
दर्शनमिय्य गरावय्य मुक्तिकि मार्गं चूपुमया ॥ 1 ॥
शिरिडीवासा सायिप्रभो ॥

कफिनि वस्त्रमु धरियिंचि भुजमुकु जोली तगिलिंचि
निंब वृक्षपु छायलो फकीरु वेषपु धारणलो
कलियुगमंदुन वॆलसितिवि त्यागं सहनं नेर्पितिवि
शिरिडी ग्रामं नी वासं भक्तुल मदिलो नी रूपम् ॥ 2 ॥
शिरिडीवासा सायिप्रभो ॥

चांद् पाटिल् नु कलुसुकुनि आतनि बाधलु तॆलुसुकुनि
गुर्रमु जाड तॆलिपितिवि पाटिल् बाधनु तीर्चितिवि
वॆलिगिंचावु ज्योतुलनु नीवुपयोगिंचि जलमुलनु
अच्चॆरुवॊंदॆनु आ ग्रामं चूसि विंतैन आ दृश्यम् ॥ 3 ॥
शिरिडीवासा सायिप्रभो ॥

बायिजा चेसॆनु नी सेव प्रतिफलमिच्चावो देवा
नी आयुवुनु बदुलिच्चि तात्यानु नीवु ब्रतिकिंचि
पशुपक्षुलनु प्रेमिंचि प्रेमतो वाटिनि लालिंचि
जीवुलपैन ममकारं चित्रमया नी व्यवहारम् ॥ 4 ॥
शिरिडीवासा सायिप्रभो ॥

नी द्वारमुलो निलिचितिनि निन्ने नित्यमु कॊलिचितिनि
अभयमुनिच्चि ब्रोवुमया ओ शिरिडीशा दयामया
धन्यमु द्वारक ओ मायी नीलो निलिचॆनु श्रीसायि
नी धुनि मंटल वेडिमिकि पापमु पोवुनु ताकिडिकि ॥ 5 ॥
शिरिडीवासा सायिप्रभो ॥

प्रलय कालमु आपितिवि भक्तुलनु नीवु ब्रोचितिवि
चेसि महम्मारी नाशं कापाडि शिरिडी ग्रामं
अग्निहोत्रि शास्त्रिकि लीला महात्म्यं चूपिंचि
श्यामानु ब्रतिकिंचितिवि पामु विषमु तॊलिगिंचि ॥ 6 ॥
शिरिडीवासा सायिप्रभो ॥

भक्त भीमाजीकि क्षयरोगं नशियिंचे आतनि सहनं
ऊदी वैद्यं चेसावु व्याधिनि मायं चेसावु
काकाजीकि ओ सायि विठल दर्शन मिच्चितिवि
दामूकिच्चि संतानं कलिगिंचितिवि संतोषम् ॥ 7 ॥
शिरिडीवासा सायिप्रभो ॥

करुणासिंधू करुणिंचु मापै करुण कुरिपिंचु
सर्वं नीके अर्पितमु पॆंचुमु भक्ति भावमुनु
मुस्लिं अनुकॊनि निनु मेघू तॆलुसुकुनि आतनि बाध
दाल्चि शिवशंकर रूपं इच्चावय्या दर्शनमु ॥ 8 ॥
शिरिडीवासा सायिप्रभो ॥

डाक्टरुकु नीवु रामुनिगा बल्वंतकु श्रीदत्तुनिगा
निमोनुकरकु मारुतिगा चिदंबरकु श्रीगणपतिगा
मार्तांडकु खंडोबागा गणूकु सत्यदेवुनिगा
नरसिंहस्वामिगा जोषिकि दर्शनमु निच्चिन श्रीसायि ॥ 9 ॥
शिरिडीवासा सायिप्रभो ॥

रेयि पगलु नी ध्यानं नित्यं नी लीला पठनं
भक्तितो चेयंडि ध्यानं लभिंचुनु मुक्तिकि मार्गं
पदकॊंडु नी वचनालु बाबा माकवि वेदालु
शरणनि वच्चिन भक्तुलनु करुणिंचि नीवु ब्रोचितिवि ॥ 10 ॥
शिरिडीवासा सायिप्रभो ॥

अंदरिलोन नी रूपं नी महिम अति शक्तिमयं
ओ सायि मेमु मूढुलमु ऒसगुमया माकु ज्ञानमुनु
सृष्टिकि नीवेनय मूलं सायि मेमु सेवकुलं
सायि नाममु तलचॆदमु नित्यमु सायिनि कॊलिचॆदमु ॥ 11 ॥
शिरिडीवासा सायिप्रभो ॥

भक्ति भावन तॆलुसुकॊनि सायिनि मदिलो निलुपुकॊनि
चित्तमुतो सायी ध्यानं चेयंडि प्रतिनित्यं
बाबा काल्चिन धुनि ऊदि निवारिंचुनु अदि व्याधि
समाधि नुंडि श्रीसायि भक्तुलनु कापाडेनोयि ॥ 12 ॥
शिरिडीवासा सायिप्रभो ॥

मन प्रश्नलकु जवाबुलु तॆलुपुनु सायि चरितमुलु
विनंडि लेक चदवंडि सायि सत्यमु चूडंडि
सत्संगमुनु चेयंडि सायि स्वप्नमु पॊंदंडि
भेद भावमुनु मानंडि सायि मन सद्गुरुवंडि ॥ 13 ॥
शिरिडीवासा सायिप्रभो ॥

वंदनमय्या परमेशा आपद्बांधव सायीशा
मा पापमुलू कडतेर्चु मा मदि कोरिक नॆरवेर्चु
करुणामूर्ति ओ सायि करुणतो ममु दरिचेर्चोयी
मा मनसे नी मंदिरमु मा पलुकुले नीकु नैवेद्यम् ॥ 14 ॥
शिरिडीवासा सायिप्रभो ॥

अखिलांडकोटि ब्रह्मांडनायक
राजाधिराज योगिराज परब्रह्म
श्रीसच्चिदानंद सद्गुरु सायिनाथ् महराज् की जै ॥




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