अन्नमय्य कीर्तन विडुव विडुवनिंक
रागं: सूर्यकांतं विडुवविडुवनिंक विष्णुड नीपादमुलु कडगि संसारवार्थि कडुमुंचुकॊनिन ॥ परमात्म नीवॆंदो पराकैयुन्नानु परग नन्निंद्रियालु परचिनानु । धरणिपै चॆलरेगि तनुवु वेसरिनानु दुरितालु नलुवंक~म दॊडिकि तीसिननु ॥ पुट्टुगु लिट्टॆ रानी भुवि लेक माननी वट्टि मुदिमैन रानी वयसे रानी । चुट्टुकॊन्नबंधमुलु चूडनी वीडनी नॆट्टुकॊन्नयंतरात्म नीकु नाकुबोदु ॥ यीदेहमे ययिन इक नॊकटैनानु कादु गूडदनि मुक्ति कडकेगिना । श्रीदेवुडवैन श्रीवेंकटेश नीकु सोदिंचि नीशरणमे चॊच्चिति नेनिकनु ॥
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