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श्री हयग्रीव संपदा स्तोत्रम्

ज्ञानानंदमयं देवं निर्मलस्फटिकाकृतिं
आधारं सर्वविद्यानां हयग्रीवमुपास्महे ॥1॥

हयग्रीव हयग्रीव हयग्रीवेति वादिनम् ।
नरं मुंचंति पापानि दरिद्रमिव योषितः ॥ 1॥

हयग्रीव हयग्रीव हयग्रीवेति यो वदेत् ।
तस्य निस्सरते वाणी जह्नुकन्या प्रवाहवत् ॥ 2॥

हयग्रीव हयग्रीव हयग्रीवेति यो ध्वनिः ।
विशोभते स वैकुंठ कवाटोद्घाटनक्षमः ॥ 3॥

श्लोकत्रयमिदं पुण्यं हयग्रीवपदांकितम्
वादिराजयतिप्रोक्तं पठतां संपदां पदम् ॥ 4॥

॥ इति श्रीमद्वादिराजपूज्यचरणविरचितं हयग्रीवसंपदास्तोत्रं संपूर्णम् ॥




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