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गंगा स्तोत्रम् देवि! सुरेश्वरि! भगवति! गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे । भागीरथिसुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः । हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे । तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम् । पतितोद्धारिणि जाह्नवि गंगे खंडित गिरिवरमंडित भंगे । कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके । तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोपि न जातः । पुनरसदंगे पुण्यतरंगे जय जय जाह्नवि करुणापांगे । रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम् । अलकानंदे परमानंदे कुरु करुणामयि कातरवंद्ये । वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः । भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये । येषां हृदये गंगा भक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः । गंगास्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम् । |