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श्री दत्त भवानी (गुजराती मूल) [श्री रङ्ग अवधूत स्वामि विरचित श्री दत्तभवानी] जय योगीश्वर दत्त दयाल । अत्र्यनसूया करी निमित्त । ब्रह्माहरिहरनो अवतार । अन्तर्यामि सतचितसुख । झोली अन्नपुर्णा करमाह्य । क्याय चतुर्भुज षडभुज सार । आव्यो शरणे बाल अजाण । सुणी अर्जुण केरो साद । दिधी रिद्धि सिद्धि अपार । किधो आजे केम विलम्ब । विष्णुशर्म द्विज तार्यो एम । जम्भदैत्यथी त्रास्या देव । विस्तारी माया दितिसुत । एवी लीला क इ क इ सर्व । दोड्यो आयु सुतने काम । बोध्या यदुने परशुराम । एवी तारी कृपा अगाध । दोड अन्त ना देख अनन्त । जोइ द्विज स्त्री केरो स्नेह । स्मर्तृगामि कलिकाल कृपाल । पेट पिडथी तार्यो विप्र । करे केम ना मारो व्हार । शुष्क काष्ठणे आंण्या पत्र । जर्जर वन्ध्या केरां स्वप्न । करि दुर ब्राह्मणनो कोढ । वन्ध्या भैंस दुझवी देव । झालर खायि रिझयो एम । ब्राह्मण स्त्रिणो मृत भरतार । पिशाच पिडा किधी दूर । हरि विप्र मज अन्त्यज हाथ । निमेष मात्रे तन्तुक एक । एकि साथे आठ स्वरूप । सन्तोष्या निज भक्त सुजात । यवनराजनि टाली पीड । रामकृष्णरुपे ते एम । तार्या पत्थर गणिका व्याध । अधम ओधारण तारु नाम । आधि व्याधि उपाधि सर्व । मुठ चोट ना लागे जाण । डाकण शाकण भेंसासुर । नासे मुठी दीने तुर्त । करी धूप गाये जे एम । सुधरे तेणा बन्ने लोक । दासि सिद्धि तेनि थाय । बावन गुरुवारे नित नेम । यथावकाशे नित्य नियम । अनेक रुपे एज अभङ्ग । सहस्र नामे नामि एक । वन्दु तुजने वारंवार । थाके वर्णवतां ज्यां शेष । अनुभव तृप्तिनो उद्गार । तपसि तत्त्वमसि ए देव । ॥ अवधूत चिन्तन श्री गुरुदेव दत्त ॥
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