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श्री शिव दंडकम् (तॆलुगु)

श्रीकंठ लोकेश लोकोद्भवस्थानसंहारकारी पुरारी मुरारि प्रिया

चंद्रधारी महेंद्रादि बृंदारकानंदसंदोहसंधायि पुण्यस्वरूपा

विरूपाक्ष दक्षाध्वरध्वंसका देव नीदैव तत्त्वंबु भेदिंचि

बुद्धिं ब्रधानंबु गर्मंबु विज्ञान मध्यात्मयोगंबु सर्व

क्रियाकारणं बंचु नानाप्रकारंबुल् बुद्धिमंतुल् विचारिंचुचुन्

निन्नु भाविंतु रीशान सर्वेश्वरा शर्व सर्वज्ञ सर्वात्मका निर्विकल्प प्रभावा भवानीपती

नीवु लोकत्रयीवर्तनंबुन् महीवायुखात्माग्नि

सोमार्कतोयंबुलं जेसि काविंचि संसारचक्र क्रियायंत्रवाहुंडवै

तादिदेवा महादेव नित्यंबु नत्यंतयोगस्थितिन् निर्मलज्ञानदीप

प्रभाजाल विध्वस्त निस्सार संसार मायांधकारुल् जितक्रोध

रागादिदोषुल् यतात्मुल् यतींद्रुल् भवत्पाद पंकेरुहध्यान

पीयूष धारानुभूतिन् सदातृप्तुलै नित्युलै रव्य याभव्य सेव्याभवा

भर्ग भट्टारका भार्गवागस्त्यकुत्सादि

नानामुनिस्तोत्रदत्तावधाना

ललाटेक्षणोग्राग्निभस्मीकृतानंग भस्मानुलिप्तांग गंगाधरा नी

प्रसादंबुन् सर्वगीर्वाणगंधर्वुलुन्

सिद्धसाध्योरगेंद्रा सुरेंद्रादुलुन्

शाश्वतैश्वर्य संप्राप्तुलै रीश्वरा विश्वकर्ता सुराभ्यर्चिता नाकु

नभ्यर्थितंबुल् प्रसादिंपु कारुण्यमूर्ती त्रिलोकैकनाथा

नमस्ते नमस्ते नमः ॥

इति श्रीमहाभारते नन्नय्य विरचित शिव दंडकम् ॥




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