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काशी पंचकं

मनो निवृत्तिः परमोपशांतिः सा तीर्थवर्या मणिकर्णिका च
ज्ञानप्रवाहा विमलादिगंगा सा काशिकाहं निजबोधरूपा ॥ 1 ॥

यस्यामिदं कल्पितमिंद्रजालं चराचरं भाति मनोविलासं
सच्चित्सुखैका परमात्मरूपा सा काशिकाहं निजबोधरूपा ॥ 2 ॥

कोशेषु पंचस्वधिराजमाना बुद्धिर्भवानी प्रतिदेहगेहं
साक्षी शिवः सर्वगतोऽंतरात्मा सा काशिकाहं निजबोधरूपा ॥ 3 ॥

काश्या हि काशत काशी काशी सर्वप्रकाशिका
सा काशी विदिता येन तेन प्राप्ता हि काशिका ॥ 4 ॥

काशीक्षेत्रं शरीरं त्रिभुवनजननी व्यापिनी ज्ञानगंगा
भक्ति श्रद्धा गयेयं निजगुरुचरणध्यानयोगः प्रयागः
विश्वेशोऽयं तुरीयः सकलजनमनः साक्षिभूतोऽंतरात्मा
देहे सर्वं मदीये यदि वसति पुनस्तीर्थमन्यत्किमस्ति ॥ 5 ॥

॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचिता काशी पंचकं प्रयाताष्टकम् ॥




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