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पितृ स्तोत्रं 2 (बृहद्धर्म पुराणम्) ब्रह्मोवाच । सर्वयज्ञस्वरूपाय स्वर्गाय परमेष्ठिने । नमः सदाऽऽशुतोषाय शिवरूपाय ते नमः । दुर्लभं मानुषमिदं येन लब्धं मया वपुः । तीर्थस्नानतपोहोमजपादीन् यस्य दर्शनम् । यस्य प्रणाम स्तवनात् कोटिशः पितृतर्पणम् । इदं स्तोत्रं पितृः पुण्यं यः पठेत् प्रयतो नरः । स्वजन्मदिवसे साक्षात् पितुरग्रे स्थितोऽपि वा । नानापकर्म कृत्वाऽपि यः स्तौति पितरं सुतः । इति बृहद्धर्मपुराणान्तर्गत ब्रह्मकृत पितृ स्तोत्रम् । |