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ऋण विमोचन अङ्गारक स्तोत्रम् स्कन्द उवाच । ब्रह्मोवाच । अस्य श्री अङ्गारक स्तोत्र महामन्त्रस्य गौतम ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, अङ्गारको देवता मम ऋण विमोचनार्थे जपे विनियोगः । ध्यानम् – रक्तमाल्याम्बरधरः शूलशक्तिगदाधरः । अथ स्तोत्रम् – लोहितो लोहिताङ्गश्च सामगायी कृपाकरः । अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः । भूतिदो ग्रहपूज्यश्च वक्त्रो रक्तवपुः प्रभुः । रक्तपुष्पैश्च गन्धैश्च दीपधूपादिभिस्तथा । ऋणरेखाः प्रकर्तव्याः दग्धाङ्गारैस्तदग्रतः । ताश्च प्रमार्जयेत्पश्चाद्वामपादेन संस्पृशन् । भूमिजस्य प्रसादेन ग्रहपीडा विनश्यति । शत्रवश्च हता येन भौमेन महितात्मना । मूलमन्त्रः – अर्घ्यम् – इति ऋण विमोचन अङ्गारक स्तोत्रम् ॥
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