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ऐकमत्य सूक्तम् (ऋग्वेद)

(ऋग्वेदे अन्तिमं सूक्तं)

ॐ संस॒मिद्युवसे वृष॒न्नग्ने॒ विश्वा᳚न्य॒र्य आ ।
इ॒लस्प॒दे समि॑ध्यसे॒ स नो॒ वसू॒न्याभर ॥

सङ्ग॑च्छध्वं॒ सं​वँदध्वं॒ सं-वोँ॒ मनां᳚सि जानताम् ।
दे॒वा भा॒गं-यँथा॒ पूर्वे᳚ सञ्जाना॒ना उ॒पासते ॥

स॒मा॒नो मन्त्र॒-स्समिति-स्समा॒नी समा॒न-म्मन॑स्स॒ह चि॒त्तमे᳚षाम् ।
स॒मा॒न-म्मन्त्रम॒भिम᳚न्त्रये व-स्समा॒नेन वो ह॒विषा᳚ जुहोमि ॥

स॒मा॒नी व॒ आकू᳚ति-स्समा॒ना हृदयानि वः ।
स॒मा॒नम॑स्तु वो॒ मनो॒ यथा᳚ व॒-स्सुस॒हासति ॥

ॐ शान्ति॒-श्शन्ति॒-श्शान्तिः॑ ॥




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