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दारिद्र्य दहन गणपति स्तोत्रम्

सुवर्ण वर्ण सुंदरं सितैक दंत-बंधुरं
गृहीत पाश-मंकुशं वरप्रदा-ऽभयप्रधम् ।
चतुर्भुजं त्रिलोचनं भुजंग-मोपवीतिनं
प्रफुल्ल वारिजासनं भजामि सिंधुराननम् ॥

किरीट हार कुंडलं प्रदीप्त बाहु भूषणं
प्रचंड रत्न कंकणं प्रशोभितांघ्रि-यष्टिकम् ।
प्रभात सूर्य सुंदरांबर-द्वय प्रधारिणं
सरत्न हेमनूपुर प्रशोभितांघ्रि-पंकजम् ॥

सुवर्ण दंड मंडित प्रचंड चारु चामरं
गृह प्रतीर्ण सुंदरं युगक्षण प्रमोदितम् ।
कवींद्र चित्तरंजकं महा विपत्ति भंजकं
षडक्षर स्वरूपिणं भजेद्गजेंद्र रूपिणम् ॥

विरिंचि विष्णु वंदितं विरुपलोचन स्तुतिं
गिरीश दर्शनेच्छया समार्पितं पराशाया ।
निरंतरं सुरासुरैः सुपुत्र वामलोचनैः
महामखेष्ट-मिष्ट-कर्मनु भजामि तुंदिलम् ॥

मदौघ लुब्ध चंचलार्क मंजु गुंजिता रवं
प्रबुद्ध चित्तरंजकं प्रमोद कर्णचालकम् ।
अनन्य भक्ति माननं प्रचंड मुक्ति दायकं
नमामि नित्य-मादरेण वक्रतुंड नायकम् ॥

दारिद्र्य विद्रावण माशु कामदं
स्तोत्रं पठॆदेत-दजस्र-मादरात् ।
पुत्री कलत्र स्वजनेषु मैत्री
पुमान्-भवे-देकदंत वरप्रासादात् ॥

इति श्रीमच्छंकराचार्य विरचितं दारिद्र्य दहन गणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥




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